Friday, March 29, 2019

सहरा की प्यास हूँ

वहशी नहीं हूँ मैं न कोई बदहवास हूँ,
महसूस कर मुझे के मैं सहरा की प्यास हूँ!

मेरे ग़मों की धूप ने झुलसा दिया मुझे,
मुझको हवा न दीजिये सूखी कपास हूँ!

मेरे बग़ैर तू भी कहाँ जी सका ए दोस्त,
तेरे बग़ैर मैं भी यक़ीनन उदास हूँ!

मुकर गए

मायने ज़िन्दगी के बदल गए,
कई अपने मेरे बदल गए!
करते थे बात आँधियों में साथ देने की,
हवा चली और सब मुक़र गए!

अपने की मेहरबानी

ना छेड किस्सा ए उल्फ़त का,
बड़ी लम्बी कहानी है.
मैं गैरों से नहीं हारा,
किसी अपने की मेहरबानी है.

मोहब्बत कैसी

मुझे छोड़ कर वो खुश है तो शिकायत कैसी,
अब मैं उन्हे खुश भी ना देखूँ तो मोह्ब्बत कैसी।।

Wednesday, March 27, 2019

शरीफ लोग


अंदर का जहर चूम लिया धूल के आ गए,
कितने शरीफ लोग थे, सब खुल के आ गए!
सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ,
सारे सिपाही मोम के थे, घुल के आ गए!!

-राहत इंदौरी


बिखरे हैं

 

गाँव, शहर

वे लोग जिनके गाँव नहीं होते,
शहर से ऊब कर कहाँ जाते होंगे?

मर्ज़-ए-मुहब्बत


ख़ुमार-ए-इश्क़ से बेहतर मिज़ाज भी नहीं कोई,
मर्ज़-ए-मुहब्बत का मगर, इलाज भी नहीं कोई!

तक़रीर जारी रखें

झूठ से, सच से, जिससे भी यारी रखें,
आप तो अपनी तक़रीर जारी रखें!

इन दिनों आप मालिक है बाजार के,
जो भी चाहें वो कीमत हमारी रखें!

तुम्हारे शहर में, हमारे गाँव में

तुम्हारे शहर में कोई मय्यत को कांधा नही देता,
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं!

बशीर बद्र

मेरे पास में

एक मुसाफ़िर हूँ इस जहां में,
चल रहा हूँ इस आस में!
मिलोगी कंही पर तुम,
आ जाओगी मेरे पास में!

अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाये

अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाये,
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये !

जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं,
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये!

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये!

~ निदा फाज़ली

इश्क़ का मरीज

जो तू हकीम, तो इश्क़ का का मरीज़ कौन?
गर मैं अज़नबी, तो तेरा अज़ीज़ कौन?

Tuesday, March 26, 2019

दिल दुखाने की वजह

जब भी कोशिश करता हूँ ,
मैं उसे मनाने की!
तो वो वजह बन जाती है,
अपने दिल को दुःखाने की!

तेरी याद

बंद कर दिए है हमने दरवाज़े इश्क़ के, पर,
तेरी याद है कि दरारों से भी चली आती है!

कैसे भूलें उसे

कुछ किस्से दिल में,
कुछ कागजों पर याद रहे।
बताओ कैसे भुलॆं उसे,
जो हर साँस मे याद रहे ।।

ख्वाब जिंदगी के

बड़े नाज़ों से देखा, जिनके संग ख़्वाब ज़िन्दगी के,
उन्ही के दिये आँसू आज, मेरी आँखों मे बिखरे है!

वक़्त

तुम कभी वक़्त की बातों में न आ जाना,
ये कभी हमसे भी कहता था मैं तेरा हूँ!

Monday, March 25, 2019

रूठना मनाना

ज़रूरी है रूठना और मनाना,
एकदूसरे को मोहब्बत में,
कहते है कि इश्क़ जवां,
इन्हीं अदाओं से रहता है!

मेरे हाथों में

अपने हाथों में मैने तुम्हारा हाँथ देखा है,
मैंने चाँद और सूरज को इक साथ देखा है!

दिल उस से मिला

मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता,
दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता!

बिता दीं जिसके लिए मैंने उम्र इंतज़ार में,
उसको मेरा पता, मेरा ही दर नहीं मिलता!

तेरा नाम बुदबुदाता हूँ

तू भले रत्ती भर न सुनती हो,
मैं तेरा नाम बुदबुदाता हूँ.
किसी लम्बे सफर की रातों में,
तुझे अलाव सा जलाता हूँ.
तू किसी रेल सी  गुजरती है,
मैं किसी पल सा थरथराता हूँ!

- दुष्यंत कुमार की रचना पर आधृत 

शोहरत

तेरे इश्क़ से ही मिली है मेरे वजूद को ये शोहरत,
मेरा ज़िक्र ही कहाँ था तेरी दास्ताँ से पहले ..!!

इस फसाने में

बस एक झिझक है हाल-ए-दिल सुनाने में,
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में !!

तन्हाई की रातों में

कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम ना होते ना सही, जिक्र तुम्हारा होता!

शायरी का सबब

खुदा भी आशिक़ाना हुआ होगा,
अपने दीदार-ए-कारीगरी पर!
और तुम मुझसे मेरी,
शायरी का सबब पूछती हो!

तुमसे बिछड़ कर

तुमसे बिछुड़ कर फक्त,
हम ही नही उदास हुए,
तुम्हारी आंखों का काजल भी,
कुछ फैला फैला लगता है।

तेरी अहमियत

जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल न हो सकेंगी
तिरी यही अहमियत है मेरी कहानियों में .

इक पल से ज्यादा

वो इक पल ही सही जिसमें तुम मयस्सर हो,
उस इक पल से ज़्यादा तो ज़िन्दगी भी नहीं।

Sunday, March 24, 2019

तुम्हारी याद


आज फिर टूटकर तुम्हारी याद आयी तो एहसास हुआ,
कि कोई दिल में उतर जाये तो भुलाया नहीं जाता!

Saturday, March 23, 2019

ऊँचाइयाँ

कद बढ़ा नहीं करते हैं,
ऐड़ियां उठाने से!
उँचाईया अक्सर मिलती हैं,
सर झुकाने से!

Friday, March 22, 2019

तूने

चराग़ बन के जल सकेगा क्या,
मोम जैसा पिघल सकेगा क्या!
तूने जूते तो मेरे पहन लिए,
चाल भी मेरी चल सकेगा क्या!?

Wednesday, March 20, 2019

उसके असर में है

चला गया है वो, अब तक मेरी नज़र में है,
मानता नहीं दिल मेरा, उसके असर में है!

होली, Holi

आईना गिर गया फिर भी टूटा नही,
प्यार है बुलबुला फिर भी फूटा नहीं!
मुद्दतों पहले मैंने रंगा था उसे,
आज तक रंग हाथों से छूटा नही!

आ मिटा दें दिलों पे जो स्याही आ गई है,
तेरी होली मैं मनाऊं, मेरी ईद तू मना ले!

मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के,
हम से तुम कुछ माँगने आओ बहाने फाग के!

हर इक रांझे को मिल जाये जो उसकी हीर होली में,
चटख़ रंगों में घुल जाये तो दिल की पीर होली में ,
हमारे दिल की दिल्ली में जो राजस्थान पसरा है,
उसे छूकर लबों से तुम करो कश्मीर होली में!

करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है,
हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है,
तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें उसे,
छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है,
बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की,
जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि होली है!

 

Tuesday, March 19, 2019

भूलकर तुमको

तेरी याद तेरी मोहब्बत से,
किनारा कर लिया हमने!
भूल कर तुमको जैसे तैसे,
गुज़ारा कर लिया हमने!

ख्वाब दिखा दिया

फैसला कर लिया था उनसे कभी मिलेंगे नही,
फिर आँखों ने उनके साथ होने का ख़्वाब दिखा दिया।

झगड़ा क्यूँ करें हम

नया इक रब्त पैदा क्यूँ करें हम,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम!

रब्त - रिश्ता

कैसे फासले

दूरी हुई  तो तुमसे,
करीब और हम हुए!
ये कैसे फ़ासले थे,
जो बढ़ने से कम हुए॥

उसकी आँखों में

कई शेर छुपे है उसकी आँखों में,
मैं ढूंढकर कागज़ो को थमा देता हूँ।

औकात में रहे

शाखों से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम,
आँधी से कोई कह दे के औक़ात में रहे!

सूली पर चढ़ा देते हैं

है प्यार की बस्ती में दरिंदों की हुकूमत,
सूली पर चढ़ा देते हैं इल्ज़ाम से पहले!

पुकारा नहीं

समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं,
जो हम से मिल के बिछड़ जाय वो हमारा नहीं!

समन्दरों को भी हैरत हुई कि डूबते वक्त,
किसी को हमने मदद के लिए पुकारा नहीं!

नज़ाकत का भ्रम

कितने शीशों की नज़ाकत का भरम खुल जाएगा,
इस चमन के फूल को पत्थर न होने दीजिये!

मतलब के बिना

अपने मतलब के अलावा कौन किसी को पूछता है,
शज़र जब सूख जाये तो परिंदे भी बसेरा नही करते !

वादिया फिर से लहरायेगी

सब्र कर ऐ दोस्त सुनहरी बन बसंत फिर से आयेगी
जब प्यार के पल सजाये वादिया फिर से लहरायेगी ।।

लब मेरे


सारी उम्र महकते रहे लब मेरे,
तेरी पेशानी चुमी थी कभी!

साया शजर का

चले जो धूप में मंज़िल थी उन की,
हमें तो खा गया साया शजर का!

शजर क्या करते

वो मुसाफिर ही खुली धूप का था,
साये फैला के शजर क्या करते!

डर लगता है

सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है,
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है!

मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा,
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है!

बशीर बद्र

ख्वाबों के दरख्त

मैंने ये सोचकर नहीं बोए ख्वाबों के दरख्त,
कि कौन सेहरा मे लगे शजर को पानी देगा !

शहर का अंदाज़

इस शहर के अंदाज़ भी अजीब हैं यारों,
गूँगों से कहा जाता है बहरों को पुकारो!

साये में

उस शजर के साए में बैठा हूँ मैं,
जिस की शाख़ों पर कोई पत्ता नहीं।

ऐसा हो स्कूल हमारा

जहाँ न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा

जहाँ न अक्षर कान उखाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न भाषा जख़्म उभारे, ऐसा हो स्कूल हमारा

जहाँ किताबें निर्भय बोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
मन के पन्ने-पन्ने खोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा।

Monday, March 18, 2019

कुछ बात दरमियाँ थी

किसको बताऊँ जा के अफ़सोस क्या करूँ,
कुछ बात दरमियान थी अब जो नहीं रही!

मुझसे ख़फ़ा

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ!

संघर्ष

जो मुस्कुरा रहा है उसे दर्द ने पाला होगा,
जो चल रहा है उसके पाँव में छाला होगा,
बिना संघर्ष के इंसान चमक नही सकता,
जो जलेगा उसी दिये में तो उजाला होगा ।

दुनिया

जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया,
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया!

हर किस्सा तेरे नाम

क्या पढोगी तुम मेरी मोहब्बत की किताब,
यही की उसका हर किस्सा तेरे नाम का है!
                                            

मेरी कहानी

तितलियां और जुगनू अंजान ही रहे,
मेरी कहानी सिर्फ दीमकों ने पढ़ी है!

दुनिया

एक मैं हूँ जो समझ नहीं सका खुद को आज तक,
दुनिया है जो न जाने मुझे क्या क्या समझ लेती है!

सो जाओ, good night

सो जाओ तुम अपनी दुनियां में आराम से,
मेरा अभी इस रात से कुछ हिसाब बाकी है!

Sunday, March 17, 2019

शाम

एक साँवला सा एहसास ज़हन में बसाए हुए कहीं,
निकलती है शाम, धूप के चले जाने के बाद ही!

तुम

तुम “कई” बार मिल चुके होते,
तुम जो मिलते अगर दुआओं से!

कातिल हो जाओ

मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ,
तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ!

मुरीद

दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद,
वक्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं।
मेरी गली से गुजरते हैं छुपा के खंजर,
रू-ब-रू होने पर सलाम किया करते हैं!

दीवानों का मौसम

शहर में बिखरी हुई हैं, ज़ख्म-ए-दिल की खुशबुएँ,
ऐसा लगता है कि दीवानों का मौसम आ गया!

ईमान, परेशान

दगाबाजों का शहर है,
चारों तरफ ज़हर है!
जिसका जिंदा ईमान है,
यहाँ वो ही परेशान है!!

मुफ़लिसी

मुफ़लिसी का हमने अपनी इस तरह रक्खा भ्रम,
वास्ते  कम  कर  दिये ,  मग़रूर  कहलाने  लगे!

ज़ख्म रूह के

नाख़ून अल्फ़ाज़ों के रोज़ पैने करता हूँ,
ज़ख़्म रूह के सूखे अच्छे नहीं लगते !!

ये और बात है

ये और बात कि खुद में सिमट के रहता हूँ,
उठाऊं हाथ तो बाहों में आसमाँ आ जाय!

कसूरवार

खुद की कीमत को कुछ इस तरह से जानता हूँ,
दूसरों की गलती पर, कसूरवार खुद को मानता हूँ!

वक़्त की मार

जो करता था बहुत गुरूर अपने आप पर,
आज वो भी खामोश रहा वक्त की मार पर!

तेरा जिक्र

लफ्जों में मेरे,
तेरा असर जरूर मिलेगा!
तेरा नाम ना भी मिले,
तेरा जिक्र जरूर मिलेगा!!

Friday, March 15, 2019

थोड़ा तुम थोड़ा हम

दिल में जाने क्या - क्या ग़म आ जाते हैं,
अब  ये  आँसू  बे - मौसम  आ  जाते  हैं!
राहों  की  दूरी  हो  शायद  कम  ऐसे,
थोड़ा तुम आओ थोड़ा हम आ जाते हैं!

थोड़ी दूर साथ चलो

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो,
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो!
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है,
मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो!

नए मिजाज का शहर

कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो।

बंदूकों में

क़ुरान सिमटी पड़ी है संदूकों में,
जाहिल, जन्नत ढूँढते है बंदूकों में।।

हम रह गए

हम रूठे दिलों को मनाने में रह गये,
गैरों को अपना दर्द सुनाने में रह गये!
मंजिल हमारी हमारे करीब से गुजर गई,
हम दूसरों को रास्ता दिखाने में रह गयें!

सीने में दिल

वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल ही नहीं.
दिल का दौरा क्या पड़ा, ये दाग भी धुल गया!

मंज़िल


किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल,
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा!
~ अहमद फ़राज़
 
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!
~ मजरूह
 
सफ़र में कोई किसी के लिए ठहरता नहीं,
न मुड़ के देखा कभी साहिलों को दरिया ने!
~ फ़ारिग़ बुख़ारी

Thursday, March 14, 2019

अल्फाज़ से ईलाज

शायरों से ताल्लुक रखो तबियत ठीक रहेगी,
ये वो हकीम है जो अल्फ़ाज़ों  से इलाज़ करते है!

तुम जो मिल जाओ

जागती रातो को,
सपनो का बहाना मिल जाए!
तुम जो मिल जाओ तो,
जीने का बहाना मिल जाए!

कितना आसान

पूछ लेते वो बस मिज़ाज मेरा,
कितना आसान था इलाज मेरा!

सितम

सितम की चाल सितम की अदा सितम की निगाह,
तिरे सितम का सितमगर कोई हिसाब भी है!

जला के मेरे दिल में इश्क़ ए आग,
अब मुझसे ही आब मांगते है,
सितम भी करते है,
और सवाब मांगते है।

ऐसा महबूब

मिला है अब के इक ऐसा पढ़ा लिखा महबूब,
जो मेरे दिल के बराबर दिमाग़ रखता है।

तुम हो जाता हूँ

अच्छा खासा बैठे बैठे, गुम हो जाता हूँ,
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता, तुम हो जाता हूँ!

रक्स

कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का,
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का!
गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों,
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का!

सबब

कभी कभी तो रो पड़ती हैं यूँ ही आँखें,
उदास होने का कोई सबब नहीं होता !!

क्या सोचता रह गया

कुछ कह ना सका सोचता रहा गया,
लफ्ज़ अपने वो क्यूँ तौलता रह गया!

अश्क़ आंखों से मेरे जो ढलते रहे,
आसूं दामन से वो पोछता रह गया!

कर न पाया इश्क़ का इज़हार मुझसे कभी,
जाने क्या उम्र भर सोचता रह गया!

पाक हो गये

रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए,
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए!
~मिर्ज़ा ग़ालिब

वो रोए

वो रोए तो बहुत, पर मुझसे मुंह मोड़ कर रोए,
कोई मजबूरी होगी, जो दिल तोड़ कर रोए!
मेरे सामने तो कर दिए, मेरे तस्वीर के टुकड़े,
पता चला मेरे पीछे, वो उन्हे जोड़ कर रोए!!

तनहाई का आलम


पलकों में आँसु और दिल में दर्द सोया है,
हँसने वालो को क्या पता, रोने वाला किस कदर रोया है,
ये तो बस वही जान सकता है तनहाई का आलम,
जिसने जिन्दगी में किसी को पाने से पहले खोया है!

शब्दों में ताकत


अपने शब्दों में ताकत डालें, आवाज में नहीं,
बारिश से फूल उगते हैं, तूफ़ान से नहीं!

इश्तिहार शायरी

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
-दुष्यंत कुमार

ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला!

सोचता हुँ, इश्तेहार दे दूँ कि दिल खाली है,

वो जो आया था किरायेदार निकला!

इक चेहरे पर, कई चेहरे नुमाया है,
आजकल आदमी कम,  इश्तिहार ज़ियादा है ।

ऐ दोस्त, उसने मुझको नामदार कर दिया;
दिल से निकाला और #इश्तिहार कर दिया।

इश्तिहार

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
-दुष्यंत कुमार

इश्तिहार

ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला!

इश्तिहार

ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला!

जैसे इश्तिहार कोई

दिल में चुभने लगा है खार कोई,
पड़ गई है कहीं दरार कोई!
मुझको पढ़कर वो ऐसे भूल गया,
जैसे कागज़ पे इश्तेहार कोई!

इश्तिहार

ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला!

फासला रखना

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना,
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता!
 
~ बशीर बद्र

बशीर बद्र

तुम्हारे शहर में कोई मय्यत को कांधा नही देता,
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं!


सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है,
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है!
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा,
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है!


बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
 
 
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
 
 
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना,
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता!
 
 
मुझे  इश्तेहार  सी  लगती हैं  ये मुहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्न -ए- पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ ,  मेरे साथ तुम भी चला करो
 
~बशीर बद्र

अश्क

जब ज़ख्म सहम से गये,
अश्क़ फिर थम से गये।

राब्ता ही नहीं

जी रहे हैं ज़िन्दगी इस तरह ऐ दोस्त,
कि जैसे ज़िन्दगी से कोई वास्ता ही नहीं!

तकलीफदेह हैं राहे-मंज़िल मगर चल रहे है,
कि इसके सिवा और कोई रास्ता ही नहीं!

हो गए गाफ़िल तुम इस तरह मेरी जिंदगी से,
कि जैसे हमसे कभी था कोई राब्ता ही नहीं !!

मोहब्बत के सिवा

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा,

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा!

आशिकी का मजा

आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए,
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए!

तेरा वहम

मेरे दिल की मजबूरी को कोई इल्जाम न दे, 
मुझे याद रख बेशक मेरा नाम न ले!
तेरा वहम है कि मैंने भुला दिया तुझे, 
एक भी साँस ऐसी नहीं जो तेरा नाम न ले!!

दुनिया

दुनिया  मेरे  हिसाब से ढल जाये,
ये तो मुमकिन नही!
लेकिन मैं कोशिश भी ना करू,
इतना मैं  बुजदिल भी नही!!

शिद्दत

ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही,
जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही!

अपनों से हो जंग

जिन्दगी में ये हुनर भी आजमाना चाहिये,
अपनों से हो जंग तो हार जाना चाहिये!

Wednesday, March 13, 2019

ज़माना

तीन शेर-

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

~ साहिर लुधियानवी

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं

~ जिगर मुरादाबादी

वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से
वो और थे जो हार गए आसमान से

~फ़हीम जोगापुरी

खुद को आजमाते हुए

वो कौन है मुझे आवाज़ क्यों नहीं देता,
मैं सुन रहा हूँ जिसे ख़ुद में गुनगुनाते हुए!
अँधेरी शब में हवा से नज़र मिलाते हुए,
मैं बुझ न जाऊँ कहीं ख़ुद को आज़माते हुए!!

Tuesday, March 12, 2019

उधार बाकी है

अफ़साने अभी हज़ार लिखने बाकी है,
मेरी कलम पर तेरा उधार अभी बाकी है.!
आँसू अभी तेरे सलामत है मेरे पास,
मेरी खुशियां तेरे साथ उधार बाकी है!

Monday, March 11, 2019

गुरुर नहीं ऐतबार की

चमक सूरज की नहीं, मेरे किरदार की है,
खबर ये आसमान के अखबार की है!
मैं चलूँ तो मेरे संग कारवाँ चले,
बात गुरूर की नहीं, ऐतबार की है!!

रोग तेरे इश्क का

जब खोये रहें तेरे ख्यालों में,
तो क्या नजारे और कैसी हवा!
जब रोग लगे तेरे इश्क का,
तो क्या दवा और कैसी दुआ!!

Friday, March 8, 2019

वो अफ़साना

वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,
उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा!

नाउम्मीद

दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है,
लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है!

Thursday, March 7, 2019

आसान जीना कर लिया

है समंदर को सफ़ीना कर लिया,
हमने यूँ आसान जीना कर लिया.

अब नहीं है दूर मंजिल सोचकर,
साफ़ माथे का पसीना कर लिया.

आपने अपना बनाकर हमसफ़र,
एक कंकर को नगीना कर लिया.

हँस के नादानों के पत्थर खा लिए,
घर को ही मक्का मदीना कर लिया.

कौन सा दर्द दिया है तुम ने मुझे

न तस्वीर है तुम्हारी जो दीदार किया जाये,
न तुम पास हो जो तुमसे प्यार किया जाये!
यह कौन सा दर्द दिया है तुम ने मुझे,
न तुमसे कुछ कहा जाए, न तुम बिन रहा जाये!

कभी हकीक़त में भी

कभी हकीक़त में भी आओ,
हमारी ज़िन्दगी में ज़रा!
न जाने कब से लफ़्ज़ों से,a
तुम्हारी तस्वीर बनाये बैठे है!

ऐसी खुदाई न दे

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे

अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रोशनाई न दे

~ बशीर बद्र

इंसान, उम्मीद, ज़िंदा


इंसान उम्मीदों से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है,
घायल भी उम्मीदों से है, और उम्मीदों पर ही ज़िंदा है।।

गुनाह मेरा

अपने रब के फ़ैसले पर,
भला शक़  कैसे करुँ,
सजा दे रहा है अगर वो,
कुछ तो गुनाह रहा होगा मेरा ।।

बेकसूर

निगाहें फ़ेर कर जो हमसे
जरा दूर बैठे है,
इधर भी देखिये ज़रा
हम बेक़सूर बैठे है!

आस्तीन में

यकीन किया तो ये जाना, यकीन में क्या क्या है,
ये आसमान से पूछो जरा, जमीन में क्या क्या है!
तुम्हारे हाथ का गुलदस्ता आ रहा है नज़र,
मगर पता तो चले, आस्तीन में क्या क्या है!

गुमान

मेरे हिस्से में बस इतना गुमान रहने दे,
कि मैं हूँ तेरा मुझे अपनी जान रहने दे!

अहमियत ही नहीं

ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है,
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है!

ख़ुली छतों के दिये कब के बुझ गये होते,
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है!

शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं,
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है!

इंसाफ

ये तो नहीं कहता हूँ कि सच-मुच करो इंसाफ़,
झूटी भी तसल्ली हो तो जीता ही रहूँ मैं!

पीने का सलीका, पिलाने का शूर

इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में,
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में,
न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शूर,
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में!
~नीरज

मय, मयकश, मयखाना, शराब,

इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में,
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में!
न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शूर,
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में!
~नीरज

कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का,
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का!
गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों,
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का!

न शराबी हूँ मैं और,
न मय से रिश्ता मेरा,
फिर भी नशे में रहता हूँ क्यूँकि,
किसी नशीली आँखों से है वास्ता मेरा!

शाम बन गई सहर

हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर
वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

~ गोपालदास नीरज

Saturday, March 2, 2019

रिश्ते में ऐहतियात

दिल मे तकब्बुर,जुबां पर वो कड़वाहटरखते हैं,
और कहते हैं रिश्तॆ निभाने मे ऐहतियात बरतते हैं!

हुस्न का आलम

इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का,
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम!

Friday, March 1, 2019

गज़ल, शेर, दाद

मोहब्बत से भरी कोई गजल उसे पसंद नहीं,
बेवफाई के हर शेर पे वो दाद दिया करते हैं।

शायर कह कर मुझे बदनाम ना करना दोस्तो,
में तो रोज़ शाम को दिन भर का हिसाब लिखता हूँ।

दिल हार बैठे

हमें कँहा से आएगा दिल जीतना,
हम तो अपना दिल भी तुम पर हार बैठे है!