वहशी नहीं हूँ मैं न कोई बदहवास हूँ,
महसूस कर मुझे के मैं सहरा की प्यास हूँ!
मेरे ग़मों की धूप ने झुलसा दिया मुझे,
मुझको हवा न दीजिये सूखी कपास हूँ!
मेरे बग़ैर तू भी कहाँ जी सका ए दोस्त,
तेरे बग़ैर मैं भी यक़ीनन उदास हूँ!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
वहशी नहीं हूँ मैं न कोई बदहवास हूँ,
महसूस कर मुझे के मैं सहरा की प्यास हूँ!
मेरे ग़मों की धूप ने झुलसा दिया मुझे,
मुझको हवा न दीजिये सूखी कपास हूँ!
मेरे बग़ैर तू भी कहाँ जी सका ए दोस्त,
तेरे बग़ैर मैं भी यक़ीनन उदास हूँ!
मायने ज़िन्दगी के बदल गए,
कई अपने मेरे बदल गए!
करते थे बात आँधियों में साथ देने की,
हवा चली और सब मुक़र गए!
ना छेड किस्सा ए उल्फ़त का,
बड़ी लम्बी कहानी है.
मैं गैरों से नहीं हारा,
किसी अपने की मेहरबानी है.
जब भी कोशिश करता हूँ ,
मैं उसे मनाने की!
तो वो वजह बन जाती है,
अपने दिल को दुःखाने की!
कुछ किस्से दिल में,
कुछ कागजों पर याद रहे।
बताओ कैसे भुलॆं उसे,
जो हर साँस मे याद रहे ।।
बड़े नाज़ों से देखा, जिनके संग ख़्वाब ज़िन्दगी के,
उन्ही के दिये आँसू आज, मेरी आँखों मे बिखरे है!
ज़रूरी है रूठना और मनाना,
एकदूसरे को मोहब्बत में,
कहते है कि इश्क़ जवां,
इन्हीं अदाओं से रहता है!
मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता,
दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता!
बिता दीं जिसके लिए मैंने उम्र इंतज़ार में,
उसको मेरा पता, मेरा ही दर नहीं मिलता!
तेरे इश्क़ से ही मिली है मेरे वजूद को ये शोहरत,
मेरा ज़िक्र ही कहाँ था तेरी दास्ताँ से पहले ..!!
खुदा भी आशिक़ाना हुआ होगा,
अपने दीदार-ए-कारीगरी पर!
और तुम मुझसे मेरी,
शायरी का सबब पूछती हो!
तुमसे बिछुड़ कर फक्त,
हम ही नही उदास हुए,
तुम्हारी आंखों का काजल भी,
कुछ फैला फैला लगता है।
आज फिर टूटकर तुम्हारी याद आयी तो एहसास हुआ,
कि कोई दिल में उतर जाये तो भुलाया नहीं जाता!
चराग़ बन के जल सकेगा क्या,
मोम जैसा पिघल सकेगा क्या!
तूने जूते तो मेरे पहन लिए,
चाल भी मेरी चल सकेगा क्या!?
तेरी याद तेरी मोहब्बत से,
किनारा कर लिया हमने!
भूल कर तुमको जैसे तैसे,
गुज़ारा कर लिया हमने!
फैसला कर लिया था उनसे कभी मिलेंगे नही,
फिर आँखों ने उनके साथ होने का ख़्वाब दिखा दिया।
नया इक रब्त पैदा क्यूँ करें हम,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम!
रब्त - रिश्ता
है प्यार की बस्ती में दरिंदों की हुकूमत,
सूली पर चढ़ा देते हैं इल्ज़ाम से पहले!
समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं,
जो हम से मिल के बिछड़ जाय वो हमारा नहीं!
समन्दरों को भी हैरत हुई कि डूबते वक्त,
किसी को हमने मदद के लिए पुकारा नहीं!
अपने मतलब के अलावा कौन किसी को पूछता है,
शज़र जब सूख जाये तो परिंदे भी बसेरा नही करते !
सब्र कर ऐ दोस्त सुनहरी बन बसंत फिर से आयेगी
जब प्यार के पल सजाये वादिया फिर से लहरायेगी ।।
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है,
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है!
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा,
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है!
बशीर बद्र
जहाँ न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न अक्षर कान उखाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न भाषा जख़्म उभारे, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ किताबें निर्भय बोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
मन के पन्ने-पन्ने खोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा।
जो मुस्कुरा रहा है उसे दर्द ने पाला होगा,
जो चल रहा है उसके पाँव में छाला होगा,
बिना संघर्ष के इंसान चमक नही सकता,
जो जलेगा उसी दिये में तो उजाला होगा ।
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया,
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया!
दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद,
वक्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं।
मेरी गली से गुजरते हैं छुपा के खंजर,
रू-ब-रू होने पर सलाम किया करते हैं!
दिल में जाने क्या - क्या ग़म आ जाते हैं,
अब ये आँसू बे - मौसम आ जाते हैं!
राहों की दूरी हो शायद कम ऐसे,
थोड़ा तुम आओ थोड़ा हम आ जाते हैं!
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो,
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो!
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है,
मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो!
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो।
हम रूठे दिलों को मनाने में रह गये,
गैरों को अपना दर्द सुनाने में रह गये!
मंजिल हमारी हमारे करीब से गुजर गई,
हम दूसरों को रास्ता दिखाने में रह गयें!
वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल ही नहीं.
दिल का दौरा क्या पड़ा, ये दाग भी धुल गया!
शायरों से ताल्लुक रखो तबियत ठीक रहेगी,
ये वो हकीम है जो अल्फ़ाज़ों से इलाज़ करते है!
सितम की चाल सितम की अदा सितम की निगाह,
तिरे सितम का सितमगर कोई हिसाब भी है!
जला के मेरे दिल में इश्क़ ए आग,
अब मुझसे ही आब मांगते है,
सितम भी करते है,
और सवाब मांगते है।
कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का,
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का!
गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों,
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का!
कुछ कह ना सका सोचता रहा गया,
लफ्ज़ अपने वो क्यूँ तौलता रह गया!
अश्क़ आंखों से मेरे जो ढलते रहे,
आसूं दामन से वो पोछता रह गया!
कर न पाया इश्क़ का इज़हार मुझसे कभी,
जाने क्या उम्र भर सोचता रह गया!
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
-दुष्यंत कुमार
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला!
सोचता हुँ, इश्तेहार दे दूँ कि दिल खाली है,
वो जो आया था किरायेदार निकला!
इक चेहरे पर, कई चेहरे नुमाया है,
आजकल आदमी कम, इश्तिहार ज़ियादा है ।
ऐ दोस्त, उसने मुझको नामदार कर दिया;
दिल से निकाला और #इश्तिहार कर दिया।
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
-दुष्यंत कुमार
दिल में चुभने लगा है खार कोई,
पड़ गई है कहीं दरार कोई!
मुझको पढ़कर वो ऐसे भूल गया,
जैसे कागज़ पे इश्तेहार कोई!
जी रहे हैं ज़िन्दगी इस तरह ऐ दोस्त,
कि जैसे ज़िन्दगी से कोई वास्ता ही नहीं!
तकलीफदेह हैं राहे-मंज़िल मगर चल रहे है,
कि इसके सिवा और कोई रास्ता ही नहीं!
हो गए गाफ़िल तुम इस तरह मेरी जिंदगी से,
कि जैसे हमसे कभी था कोई राब्ता ही नहीं !!
मेरे दिल की मजबूरी को कोई इल्जाम न दे,
मुझे याद रख बेशक मेरा नाम न ले!
तेरा वहम है कि मैंने भुला दिया तुझे,
एक भी साँस ऐसी नहीं जो तेरा नाम न ले!!
दुनिया मेरे हिसाब से ढल जाये,
ये तो मुमकिन नही!
लेकिन मैं कोशिश भी ना करू,
इतना मैं बुजदिल भी नही!!
तीन शेर-
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
~ साहिर लुधियानवी
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
~ जिगर मुरादाबादी
वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से
वो और थे जो हार गए आसमान से
~फ़हीम जोगापुरी
वो कौन है मुझे आवाज़ क्यों नहीं देता,
मैं सुन रहा हूँ जिसे ख़ुद में गुनगुनाते हुए!
अँधेरी शब में हवा से नज़र मिलाते हुए,
मैं बुझ न जाऊँ कहीं ख़ुद को आज़माते हुए!!
अफ़साने अभी हज़ार लिखने बाकी है,
मेरी कलम पर तेरा उधार अभी बाकी है.!
आँसू अभी तेरे सलामत है मेरे पास,
मेरी खुशियां तेरे साथ उधार बाकी है!
चमक सूरज की नहीं, मेरे किरदार की है,
खबर ये आसमान के अखबार की है!
मैं चलूँ तो मेरे संग कारवाँ चले,
बात गुरूर की नहीं, ऐतबार की है!!
जब खोये रहें तेरे ख्यालों में,
तो क्या नजारे और कैसी हवा!
जब रोग लगे तेरे इश्क का,
तो क्या दवा और कैसी दुआ!!
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
अभी तो बदन में लहू है बहुत
कलम छीन ले रोशनाई न दे
~ बशीर बद्र
इंसान उम्मीदों से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है,
घायल भी उम्मीदों से है, और उम्मीदों पर ही ज़िंदा है।।
अपने रब के फ़ैसले पर,
भला शक़ कैसे करुँ,
सजा दे रहा है अगर वो,
कुछ तो गुनाह रहा होगा मेरा ।।
ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है,
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है!
ख़ुली छतों के दिये कब के बुझ गये होते,
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है!
शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं,
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है!
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में,
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में,
न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शूर,
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में!
~नीरज
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में,
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में!
न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शूर,
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में!
~नीरज
कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का,
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का!
गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों,
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का!
न शराबी हूँ मैं और,
न मय से रिश्ता मेरा,
फिर भी नशे में रहता हूँ क्यूँकि,
किसी नशीली आँखों से है वास्ता मेरा!
हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर
वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
~ गोपालदास नीरज
दिल मे तकब्बुर,जुबां पर वो कड़वाहटरखते हैं,
और कहते हैं रिश्तॆ निभाने मे ऐहतियात बरतते हैं!
मोहब्बत से भरी कोई गजल उसे पसंद नहीं,
बेवफाई के हर शेर पे वो दाद दिया करते हैं।
शायर कह कर मुझे बदनाम ना करना दोस्तो,
में तो रोज़ शाम को दिन भर का हिसाब लिखता हूँ।