किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल,
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा!
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा!
~ अहमद फ़राज़
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!
~ मजरूह
सफ़र में कोई किसी के लिए ठहरता नहीं,
न मुड़ के देखा कभी साहिलों को दरिया ने!
न मुड़ के देखा कभी साहिलों को दरिया ने!
~ फ़ारिग़ बुख़ारी
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