आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं, जो हम से मिल के बिछड़ जाय वो हमारा नहीं!
समन्दरों को भी हैरत हुई कि डूबते वक्त, किसी को हमने मदद के लिए पुकारा नहीं!
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