Thursday, March 14, 2019

इश्तिहार शायरी

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
-दुष्यंत कुमार

ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला!

सोचता हुँ, इश्तेहार दे दूँ कि दिल खाली है,

वो जो आया था किरायेदार निकला!

इक चेहरे पर, कई चेहरे नुमाया है,
आजकल आदमी कम,  इश्तिहार ज़ियादा है ।

ऐ दोस्त, उसने मुझको नामदार कर दिया;
दिल से निकाला और #इश्तिहार कर दिया।

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