अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
-दुष्यंत कुमार
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई,
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला!
सोचता हुँ, इश्तेहार दे दूँ कि दिल खाली है,
वो जो आया था किरायेदार निकला!
इक चेहरे पर, कई चेहरे नुमाया है,
आजकल आदमी कम, इश्तिहार ज़ियादा है ।
ऐ दोस्त, उसने मुझको नामदार कर दिया;
दिल से निकाला और #इश्तिहार कर दिया।
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