Sunday, March 17, 2019

मुरीद

दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद,
वक्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं।
मेरी गली से गुजरते हैं छुपा के खंजर,
रू-ब-रू होने पर सलाम किया करते हैं!

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