कुछ कह ना सका सोचता रहा गया,
लफ्ज़ अपने वो क्यूँ तौलता रह गया!
अश्क़ आंखों से मेरे जो ढलते रहे,
आसूं दामन से वो पोछता रह गया!
कर न पाया इश्क़ का इज़हार मुझसे कभी,
जाने क्या उम्र भर सोचता रह गया!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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