आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
एक साँवला सा एहसास ज़हन में बसाए हुए कहीं, निकलती है शाम, धूप के चले जाने के बाद ही!
Post a Comment
No comments:
Post a Comment