वो कौन है मुझे आवाज़ क्यों नहीं देता,
मैं सुन रहा हूँ जिसे ख़ुद में गुनगुनाते हुए!
अँधेरी शब में हवा से नज़र मिलाते हुए,
मैं बुझ न जाऊँ कहीं ख़ुद को आज़माते हुए!!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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