आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
क़ुरान सिमटी पड़ी है संदूकों में, जाहिल, जन्नत ढूँढते है बंदूकों में।।
Post a Comment
No comments:
Post a Comment