आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
नया इक रब्त पैदा क्यूँ करें हम, बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम!
रब्त - रिश्ता
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