तुम्हारे शहर में कोई मय्यत को कांधा नही देता,
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं!
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं!
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है,
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है!
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है!
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा,
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है!
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है!
बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना,
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता!
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता!
मुझे इश्तेहार सी लगती हैं ये मुहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्न -ए- पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ , मेरे साथ तुम भी चला करो
जो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ , मेरे साथ तुम भी चला करो
~बशीर बद्र
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