आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मिला है अब के इक ऐसा पढ़ा लिखा महबूब, जो मेरे दिल के बराबर दिमाग़ रखता है।
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