जी रहे हैं ज़िन्दगी इस तरह ऐ दोस्त,
कि जैसे ज़िन्दगी से कोई वास्ता ही नहीं!
तकलीफदेह हैं राहे-मंज़िल मगर चल रहे है,
कि इसके सिवा और कोई रास्ता ही नहीं!
हो गए गाफ़िल तुम इस तरह मेरी जिंदगी से,
कि जैसे हमसे कभी था कोई राब्ता ही नहीं !!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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