आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
खुदा भी आशिक़ाना हुआ होगा, अपने दीदार-ए-कारीगरी पर! और तुम मुझसे मेरी, शायरी का सबब पूछती हो!
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