कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का,
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का!
गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों,
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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