आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
सब्र कर ऐ दोस्त सुनहरी बन बसंत फिर से आयेगी जब प्यार के पल सजाये वादिया फिर से लहरायेगी ।।
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