वहशी नहीं हूँ मैं न कोई बदहवास हूँ,
महसूस कर मुझे के मैं सहरा की प्यास हूँ!
मेरे ग़मों की धूप ने झुलसा दिया मुझे,
मुझको हवा न दीजिये सूखी कपास हूँ!
मेरे बग़ैर तू भी कहाँ जी सका ए दोस्त,
तेरे बग़ैर मैं भी यक़ीनन उदास हूँ!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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