आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो।
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