कभी हकीक़त में भी आओ,
हमारी ज़िन्दगी में ज़रा!
न जाने कब से लफ़्ज़ों से,a
तुम्हारी तस्वीर बनाये बैठे है!
हमारी ज़िन्दगी में ज़रा!
न जाने कब से लफ़्ज़ों से,a
तुम्हारी तस्वीर बनाये बैठे है!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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