इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में,
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में!
न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शूर,
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में!
~नीरज
कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का,
आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का!
गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों,
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का!
न शराबी हूँ मैं और,
न मय से रिश्ता मेरा,
फिर भी नशे में रहता हूँ क्यूँकि,
किसी नशीली आँखों से है वास्ता मेरा!
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