अब तो मैं इसपे भी राज़ी, जो भी हो, हो जाने दो।
रास्तों और मंज़िलों की दूरियां बढ़ जाने दो।
हम रास्तों पे गुनगुनाते चलते जाएंगे यूँहीं।
और मंज़िलों को देखते, आगे गुज़र कर जाएंगे।
जब कभी तपती दुपहरी, या ठिठुरती रात हो।
जब कभी वीरानियों में कोई भी ना साथ हो।
पेड़ की छाओं में या फिर पर्वतों की गोद में।
हम तुम्हें सीने में अपनी डाल कर सो जाएंगे।
आसमाँ की बिजलियों से पत्तियाँ सुलगाएँगे।
चार रोटी पत्थरों को पीस कर बन जायेंगे।
मुश्किलें जब भी कभी जो आजमाना चाहेगी
मुश्किलों को ठेंगा दिखलाकर के हम मुस्काएगें।
एक दिन तो टूट जानी है हमारी साँस भी।
एक दिन तो भूल जाएंगे हमारी याद भी।
एक दिन गर छोड़ के जाना हीं है ये जान जब
तो जिंदगी को मील का पत्थर बना कर जायेंगे।
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