जुदाई नही,हमने विसाल-ए-यार मांगा था।
सुकून-ए-कल्ब को , तेरा दीदार मांगा था।।
मुख्तसर होते होते,सिमट गयी है जो अब।
उस मुलाकात से,सब्र-ओ-करार मांगा था।।
साकी हमे शराब की,अब तलब नही रही।
हमने बस अश्कों का,आबशार मांगा था।।
हमसफर भी हमे तो, सारे गमजदा मिले।
हमने तो रहबर कोई, गमख्वार मांगा था।।
खुशी क्या,उसने गम भी नही दिये अपने।
हमने तो गम भी,सर-ए-बाजार मांगा था।।
गुमराह हमे करके,मकतल पर ले गये थे।
जिनसे कभी हमने, दर-ए-यार मांगा था।।
जिस इंसाफ के लिए,भटके हैं दर-ब-दर।
मुंसिफ से वो हमने,भरे दरबार मांगा था।।
सबसे नजर बचाकर, यूं चले आओ तुम।
फकत यही तो तुमसे,बार-बार मांगा था।।
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