Thursday, August 31, 2023

दिल के जज़्बात ठिकाने लगा लेता हूँ

लोगों की हरकतों को, मैं दिल में बसा लेता हूँ
है पानी में कोंन कितना, मैं थाह लगा लेता हूँ

जब भी बढ़ाता है कोई हाथ, यारी की खातिर,
तब मैं दिल के जज़्बात, ठिकाने लगा लेता हूँ

मैंने जलाया है आशियाँ, सिर्फ औरों के वास्ते,
जब आता है कोई दर पे, मैं राख दिखा देता हूँ

बस यही ठीक है, इस जालिम ज़माने के लिए,
चाहे अपना हो या पराया, मैं राह दिखा देता हूँ

लोग समझते हैं मुझको, हद दर्जे का अहमक,
मगर मिलते ही मौका, उनकी जात बता देता हूँ

जो भूल जाते हैं, अपने कुकर्मों का लेखा जोखा,
मैं अपनी तरह से उनको, आईना दिखा देता हूँ

आज भी ये दिल, मोहब्बतों का दरिया है "",
पर डर के बेरहम दुनिया से, पत्थर बना लेता हूँ

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