हमेशा ही दिल के खिलौने टूटकर बिखरते हैं
कुछ गलतफामियों में होकर, कुछ मोहब्बतों में
कभी आँसुओं के कतरे, छुपाएँ जाते हैं
कभी इस तरह के दिल्लगी में, बताएँ जाते हैं
अलग होने के रास्ते, बाहों में ढूँढे जाते हैं
कभी कर्ज़ होंठों पे रखकर, जुदा हो जाते हैं
हमेशा ही गम के मौसम आते हैं
कभी खुशी होती है,
कभी धूल बनके उड़ती है
इस सफ़र में सूरज पिघला है, आसमाँ रूठा है
जला है इश्क, हवाएँ झूठी है इस दर्द में...
सब चुप है, मालिक चुप हैं, ये दुनिया चुप है
कोई टिके नहीं मोहब्बतों में, धूप के रेशमी धागों पे
ऐ घटता बढ़ता पारा हैं, कोई मेरा न सहारा हैं
थोड़े में बहुत, ज्यादे में कम हैं,
कैसे पेश आएँ वो, जो उड़ता हुआ गम हैं
हमेशा ही ऐ चेहरे नए से पुराने होते हैं
हमेशा ही ऐ अल्फाजों के तराने होते हैं
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