तुझ में और मुझ में
असमानता है बहुत
मैं बंधन से
मुक्त होना चाहता हूं
और तुम
मुक्ति से मुक्त होना चाहती हो
फिर भी
तुझ में और मुझ में
एक समानता है
तुम भी प्रेम से युक्त होना चाहती हो
और मैं भी प्रेम से युक्त होना चाहता हूं
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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