आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कभी बेपनाह
बरस पड़ी कभी मौन होकर पड़ी रही बारिश को क्या कहें, हम दिखती है कुछ तुम सी।।
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