याद है मुझे आज भी
मेरा वो पहला प्यार
स्कूल का बड़ा सा मैदान
दिवस था वो सोमवार
खेल रही थी तुम
सखियों संग आंख मिचौली
खिलखिलाते देख तुम्हें
मन में समा गई सूरत अति भोली
फिर तो मिलना हुआ कई बार
आंखों ही आंखों में
एक दूजे के लिए
प्यार था बेशुमार
वादा न भूलने भुलाने का किया
मुहब्बत की डोर से बंधे रहेंगे सदा
फिर उस अशुभ घड़ी में कर विष पान
क्यों हो गई मुझसे तुम यूं जुदा
अभी तलक हूं असमंजस में
बिन संवाद तुम हो गई शांत
कैसे करूं प्यार का इजहार
मन अब भी रहता है अशांत
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