कभी इंकार करते हो कभी इकरार करते हो तुम
मिजाज़ बदल कर जब भी जी चाहा तकरार किया करते हो
सच तो ये तेरी मेहरबानी के बदौलत मेरी जिंदगी गुजर रही तुम मिजाज बदल के हमें बेकरार किया करते हो
अब अजीब तजुर्बा दिल को होने लगा है नींद मेरी उड़ा के जाने वाले कभी रोने को हमें मजबूर किया करते हो
है दर्द कितना हमें तुमसे दूर होने पे डरते हैं हम भी अक्सर तू अब मुझसे दूर होकर हमें बेकरार किया करते हो
अच्छी नहीं लगती तेरी आदत अब हमें तुम भी अब मर्जी के मुताबिक जब भी चाहा हर रोज करार किया करते
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