वो अपनी हठ पर कायम नही रहे
और चाहते मेरी जिद भी नही रहे
कुछ-कुछ बेशर्म होते जा रहे जान
कहने लगे लोग मगर मान नही रहे
परछाई सी रहती रही मैं अब नही
सदमे के मारे मगर बीमार नही रहे
अब रंजिश भी करे तो किससे हम
मेरे दिलबर 'उपदेश' खुद नही रहे
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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