सब कुछ मुझे मिला जो तिरा नक़्श-ए-पा मिला
तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त
अब तो तन्हाई के लम्हे भी हसीं लगते हैं
कैसी ताबीर की हसरत कि 'दोस्त' बरसों से
ना-मुराद आँखों ने देखा ही नहीं ख़्वाब कोई
अब क्या बताऊँ मैं तिरे मिलने से क्या मिला
इरफ़ान-ए-ग़म हुआ मुझे अपना पता मिला
इश्क़ इश्क़ हो शायद हुस्न में फ़ना हो कर
इंतिहा हुई ग़म की दिल की इब्तिदा हो कर
दिल हमें हुआ हासिल दर्द में फ़ना हो कर
इश्क़ का हुआ आग़ाज़ ग़म की इंतिहा हो कर
ना-मुराद रहने तक ना-मुराद जीते हैं
साँस बन गया इक एक नाला ना-रसा हो कर
शगुफ़्तगी का लताफ़त का शाहकार हो तुम
फ़क़त बहार नहीं हासिल-ए-बहार हो तुम
जो एक फूल में है क़ैद वो गुलिस्ताँ हो
जो इक कली में है पिन्हाँ वो लाला-ज़ार हो तुम
हलावातों की तमन्ना, मलाहतों की #मुराद
ग़ुरूर कलियों का फूलों का इंकिसार हो तुम
कैफ़ी आज़मी
दिल की मुराद है के किसी रोज़ आ के तू
बिन ईद के भी ईद का एहसास दिला दे
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