Sunday, December 13, 2020

ज़िंदगी जीने को है, जी इसे जीने वाले

ज़िंदगी जीने को है, जी इसे जीने वाले ,
हम भी तो तुझे, रोज़ नहीं मिलने वाले ।

क्यों नाराजगी जाहिर करें, किसी से भला,
कौन हमेशा के लिए, हम हैं ठहरने वाले।

चल कर लेते हैं, कुछ नादानियां हम भी ,
रोज कहाँ मिलेंगे, यूँ मरते हुए हँसने वाले ।

जख्म जो मिले वो, फूल बन जायेंगे ,
न मिलेंगे गुलिशतां में, यूँ महकने वाले।

ता'बीर ख़ुद 'दोस्त', लिखना जानती है ,
ख़्वाब उसके क्या, पढ़ेंगे पढ़ने वाले ।

कश्तियाँ उन्ही की, डूबती हैं 'दोस्त' ,
नहीं होते जो, तूफ़ां में संभलने वाले ।

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