Wednesday, December 23, 2020

जब कभी भी तुम्हारा ख़्याल आ गया

हर रोज़ गिरकर भी,
 मुक़म्मल खड़े हैं...! 
ऐ ज़िंदगी देख, 
 मेरे हौसले तुझसे भी बड़े हैं ...!

सुनो,आओ मेरे सीने से लिपट जाओ
ये दिसम्बर की सर्द हवाए कही तुम्हे बीमार ना कर दे. 

कभी किसी का ख्याल थे हम भी
गए दिनों में कमाल थे हम भी |

शाम से आँख में नमी सी है 
आज फिर आप की कमी सी है 
~ गुलज़ार

गो ये दर्दे दिल मेरा कुछ कम नहीं
गर तेरा ग़म है तो कोई ग़म नहीं
दिल में अश्कों का समुन्दर है मेरे
क्या हुआ गर आंख मेरी नम नहीं.

याद आएगी हर रोज मगर तुझे आवाज ना दूंगा,
लिखूँगा तेरे लिए ही हर ग़ज़ल, मगर तेरा नाम ना लूंगा...

सब कुछ सुनना कुछ ना कहना कितना मुश्किल है।
तुमसे बिछड़ के जिंदा रहना कितना मुश्किल है।।

तेरे जिक्र से जहन में एक हलचल मच जाती है
आती है बात होठों पर ओर गजल बन जाती है


चाँदी सोना एक तरफ़, 
तेरा होना एक तरफ़, 
एक तरफ़ तेरी आँखें,
जादू टोना एक तरफ़।।

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ 
ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ 
~ अमीर मीनाई

ग़म मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे
एक दिल दे कर ख़ुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे
सीमाब अकबराबादी

हर रोज ही जुबाँ पे, तेरी बात क्यों आती है।
बादल बिना ही नैनो से, बरसात क्यों आती है।
दिन तो गुजार देते हैं, जीवन की उलझनों में।
गम का हिसाब करने को, ये रात क्यों आती है।


काग़ज़ काग़ज़ हर्फ़ सजाया करता है
तन्हाई में शहर बसाया करता है
कैसा पागल शख्स है सारी-सारी रात
दीवारों को दर्द सुनाया करता है
रो देता है आप ही अपनी बातों पर
और फिर खुद को आप हंसाया करता है...

कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से 
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है 


कुछ न था मेरे पास खोने को 
तुम मिले हो तो डर गया हूँ मैं


आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चराग़ों से ख़ाली रही
जब कभी भी तुम्हारा ख़्याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख़याली रही
चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िन्दगी रात थी रात काली रही
मेरे सीने पे ख़ुशबू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही...

बशीर बद्र

ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं 
शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं 
हो रहा हूँ मैं किस तरह बरबाद 
देखने वाले हाथ मलते हैं...

जौन एलिया

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