ज़रा सा पास आते हैं न जाने क्यों मचलते हैं
कहीं नादान ये आंसू तुम्हारी तरफ़ न जाएं
कि इसकी गर्म शिद्दत से हमारे गाल जलते हैं
ये आंसू दिल्लगी भी है ये आंसू आशिक़ी भी है
कि इन आंसू की चौखट पर ही सारे ज़ख्म पलते हैं
हमारी बेगुनाही की गवाही देते हैं आंसू
सदाएं जब निकलती हैं तो ये फौरन निकलते हैं
हमारी ज़िंदगी भी कम है अब आंसू बहाने को
आंसुओं की वजह से ही अब फूल खिलते हैं
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