Thursday, December 24, 2020

क्यों तेरी ललक रखूं

काजल रखूं कि गजल रखूं अलक रखूं कि पलक रखूं
तू इक बार नज़र आ जाए तो मैं तेरा नाम झलक रखूं
बस अब और ना तरसा मुझपे अपने प्यार की बारिश बरसा
बता इस तरह प्यासा मैं अपने दिल को कब तलक रखूं

तेरे लिए आसमां के तारे लाऊँ जन्नत के हसीं नज़ारे लाऊँ
और तू जो कहे तो तेरे कदमों में लाकर मैं फलक रखूं

तुझ पर जिंदगी फना कर दूं तुझको कैसे मैं मना कर दूं
हो अगर तेरा इशारा तो मैं दार पर अपना हलक रखूं

बरसों से वीरान पड़ा मेरे दिल का चमन खिलना ही नहीं
तू मुझको मिलना ही नहीं तो फिर क्यों तेरी ललक रखूं

नामचीन'मुझसे अगर कहे कोई फलक लोगे या खलक लोगे
तो फिर ठुकराकर फलक को में अपने पास खलक रखूं

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