Sunday, December 6, 2020

आशिक मिजाज शायरी

न जी भर के देखा न कुछ बात की 
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की 

बशीर बद्र


होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है 
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है 

निदा फ़ाज़ली 


नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती 
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं 

हसरत मोहानी
 
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है 
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है 

हसरत मोहानी
 
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का 
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले 

मिर्ज़ा ग़ालिब
 
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो 
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है 

राहत इंदौरी
 
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन 
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा 

साहिर लुधियानवी
 
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं 
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं 

फ़िराक़ गोरखपुरी 
 
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन 
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में 

सीमाब अकबराबादी
 
राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या 
आगे आगे देखिए होता है क्या 

मीर तक़ी मीर

No comments: