Sunday, December 27, 2020

बड़ा ही रोमांचक था, जीने का फंडा,

बड़ा ही रोमांचक था, जीने का फंडा,

कंचों की गोली वह गिल्ली औ डंडा।

छड़ी से चलाना तब टायर की गाड़ी,

छुकछुक-छुकछुक, चलाना रेलगाड़ी।

कमानी पतंगों संग वह डोर औ लटाई,
लोई गोंद के संग में कांच की पिसाई।
फिर कटना मांझे से हाथों की अंगुली,
और गुस्से में खाना, बापू की पिटाई।

उछल कूद डालियों पे, फल का चुराना,
अगर पकड़े गए तो खूब बहाने बनाना।
नदिया में दोपहर तक मछली पकड़ना,
कूं-कूं करता पिल्ला बाहों में जकड़ना।

जोड़-जोड़ कर गुल्लक में पैसा बचाना,
लत्ती सरकाकर दिनभर लट्टू नचाना।
वो छुप्पन छुपाई का खेल और कबड्डी,
साईकिल चलाने में, ना रहना फिसड्डी।

सोच में पड गयी क्या, अरे घोग्घो रानी,
बताओ तेरी नदिया में, कितना है पानी?
तू गोटियां उछाल, आज खेलो रे किट्टो,
फिर आँखें मूंद अपनी, खेलें मार पिट्टोI

आओ खेलें ओका, बोका तीन तड़ोका,
देखो खेल-खेल में, ना करना तू धोखा।
दौड़, जीत-हार होगी, किसकी स्पर्धा में,
फैसले की खातिर, एक सिक्का उछालें।
आज फिर यादों का, एल्बम खंगालें।

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