Sunday, December 6, 2020

लेकिन मेरा अफ़साना उनके दिल में है.

1. ज़मानेवालों को पहचानने दिया न कभी.
बदल-बदल के लिबास अपने इनक़लाब आया.
सिवाय यास न कुछ गुम्बदे-फ़लक से मिला.
सदा भी दी तो पलटकर वही जवाब आया.

2. ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात.
जो दुआएँ कीं, वो सब तेरी निगहबाँ हो गईं.
कम न समझो दहर में सरमाय-ए-अरबाबे-ग़म.
चार बूंदें आँसुओं की, बढ़के तूफ़ाँ हो गईं.

3. मेरी दास्ताने-ग़म को, वो ग़लत समझ रहे हैं.
कुछ उन्हीं की बात बनती अगर एतबार होता.
दिले पारा-पारा तुझ को कोई यूँ तो दफ़्न करता.
वो जिधर निगाह करते उधर इक मज़ार होता.

4. मैं नहीं, लेकिन मेरा अफ़साना उनके दिल में है.
जानता हूँ मैं कि किस रग में यह नश्तर रह गया.
आशियाने के तनज़्ज़ुल से बहुत खुश हूँ कि वो,
इस क़दर उतरा कि फूलों के बराबर रह गया.

5. दिल डूबते हैं हालत-ए-बीमार देख कर
आप उठ रहे हैं क्यूँ मिरे आज़ार देख कर
दिल डूबते हैं हालत-ए-बीमार देख कर
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं
नाम लूँ किस किस का मुझ को एक बीमारी नहीं
दिल ने रग रग से छुपा रक्खा है तेरा राज़-ए-इश्क़
जिस को कह दे नब्ज़ ऐसी मेरी बीमारी नहीं
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
ज़ख़्म जो कुछ भर चले थे फिर हवा देने लगे
मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हाल
देखने वाले तरस खा कर दुआ देने लगे.

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