एक चाय की प्याली कितना सुकून देती है,
दिसम्बर को जून कर देती है.
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कई दिनों से चाय है कड़वी या अल्लाह
निदा फ़ाज़ली
चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली
सहमे सहमे हाथों ने इक किताब फिर खोली
बशीर बद्र
बिखरता जाता है कमरे में सिगरटों का धुआं
पड़ा है ख़्वाब कोई चाय की प्याली में
नज़ीर क़ैसर
उसने चलते चलते लफ़्ज़ों का ज़हराब
मेरे जज़्बों की प्याली में डाल दिया
अब्दुर्रहीम नश्तर
सामने रख के चाय की प्याली
चुस्की चुस्की तेरी कमी चक्खी
नाहिद अख़्तर बलूच
कुछ होश नहीं मुझ में रहा जब से पिलाई
उस नर्गिस-ए-मख़मूर की साक़ी ने प्याली
आफ़ताब शाह आलम सानी
सिगरटें चाय धुआं रात गए तक बहसें
और कोई फूल सा आंचल कहीं नम होता है
वाली आसी
ज़रा सी चाय गिरी और दाग़ दाग़ वरक़
ये ज़िंदगी है कि अख़बार का तराशा है
आमिर सुहैल
छोड़ आया था मेज़ पर चाय
ये जुदाई का इस्तिआरा था
तौक़ीर अब्बास
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