Thursday, December 3, 2020

रख भी मत उम्मीद इक गद्दार से

रख भी मत उम्मीद इक गद्दार से
सिर्फ़ मिलती है जफ़ा मक्कार से

दोस्त ही जब बन गया दुश्मन तेरा
बच न सकता तू किसी भी वार से

ग़ैर होते जीत भी जाता मगर
बच न पाया अपनों की ही मार से

जो मज़ा उल्फ़त में है नफ़रत में कब
कुछ न मिलता जंग की ललकार से

बोलने दो उसको चाहे जो कहे
जीत लेना दिल मगर तुम प्यार से

कुछ न लाया जब तू आया था इधर
कुछ न लेकर जाएगा संसार से

ख़ुद ही आकर देखना "दोस्त" अब
लौटकर आओगे जब तुम पार से

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