सिर्फ़ मिलती है जफ़ा मक्कार से
दोस्त ही जब बन गया दुश्मन तेरा
बच न सकता तू किसी भी वार से
ग़ैर होते जीत भी जाता मगर
बच न पाया अपनों की ही मार से
जो मज़ा उल्फ़त में है नफ़रत में कब
कुछ न मिलता जंग की ललकार से
बोलने दो उसको चाहे जो कहे
जीत लेना दिल मगर तुम प्यार से
कुछ न लाया जब तू आया था इधर
कुछ न लेकर जाएगा संसार से
ख़ुद ही आकर देखना "दोस्त" अब
लौटकर आओगे जब तुम पार से
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