वर्ना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई
~ फ़ैज़ लुधियानवी
कौन सी बात नई ऐ दिल-ए-नाकाम हुई
शाम से सुब्ह हुई सुब्ह से फिर शाम हुई
शाद अज़ीमाबादी
नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे
शकील बदायुनी
ना कोई रंज का लम्हा किसी के पास आए
खुदा करे कि नया साल सब को रास आए !
#अज्ञात
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