Sunday, January 10, 2021

दरमियाँ, फासले शायरी

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता
बशीर बद्र

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था
अदीम हाशमी

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो
बशीर बद्र

क़ुर्बतें लाख ख़ूबसूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी
अहमद फ़राज़

भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियां वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई
बशीर बद्र

फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
निदा फ़ाज़ली

दुनिया तो चाहती है यूं ही फ़ासले रहें
दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल
हबीब जालिब

मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें
दरमियां के फ़ासले का तय सफ़र कैसे करें
फ़र्रुख़ जाफ़री

उसे ख़बर है कि अंजाम-ए-वस्ल क्या होगा
वो क़ुर्बतों की तपिश फ़ासले में रखती है
ख़ालिद यूसुफ़

कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
राह में फ़ासले हैं पहले ही

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