Wednesday, April 29, 2020

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता 
आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता 

तू छोड़ रहा है तो ख़ता इस में तिरी क्या 
हर शख़्स मिरा साथ निभा भी नहीं सकता 

प्यासे रहे जाते हैं ज़माने के सवालात 
किस के लिए ज़िंदा हूँ बता भी नहीं सकता 


घर ढूँड रहे हैं मिरा रातों के पुजारी 
मैं हूँ कि चराग़ों को बुझा भी नहीं सकता 

वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए 
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता 

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