बहुत मुश्किल से करता हूँ,
तेरी यादों का कारोबार,
मुनाफा कम है,
पर गुज़ारा हो ही जाता है!
गुलज़ार
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
बहुत मुश्किल से करता हूँ,
तेरी यादों का कारोबार,
मुनाफा कम है,
पर गुज़ारा हो ही जाता है!
गुलज़ार
Aik muddat se teri yaad bhi aayi nahin humein,
Aur hum bhool gaye ho’n tujhe aisa bhi nahin!
Sunte hain, k mil jaati hai, har cheez dua se,
Ek roz tumhe maang ke dekhenge khuda se..
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका!
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया,
वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं,
मेरी नज़र में हज़ारों गुलाब खिलते हैं!
उनके लबों की तबस्सुम देती हैं सुकून मुझको,
मिलते हैं जब वो मिलती हैं खुशियाँ मुझको!
यू तो ए जिंदगी,
तेरे सफ़र से शिकायते बहुत थी,
मगर जब दर्द दर्ज कराने पँहुचे,
तो कतारे बहुत थी!
गुलजार
कलम से लिख नहीं सकते दिल के अफ़साने,
मुझे तुमसे मोहब्ब्त है तेरे दिल की अब तू जाने!
जिसने कतरे भर का भी किया है एहसान हम पर,
वक़्त ने मौका दिया तो दरिया लौटाएँगे हम उन्हें!
प्यार की तितलियां देखो कैसे उड़ती है।
हर बार ये सिर्फ तुम्हारी तरफ ही मुड़ती है।।
इश्क़ के भँवरें देखो कैसे उड़ते है।
हर बार ये सिर्फ तुम्हारी तरफ ही मुड़ती है।।
बारिश के मौसम में गजल क्या,
बनाई है गौर फ़रमाइए जरा!
बूँद चेहरे पर झर झर आ रही है ,
अब आप भी आ जाइए जरा!
बारिश के मौसम में गजल क्या,
बनाई है गौर फ़रमाइए जरा!
बूँद चेहरे पर झर झर आ रही है ,
अब आप भी आ जाइए जरा!
जब पेशानि पर तेरे नाम के ‘बल’ पड़े,
फिर तेरी तलाश में हम भी निकल’ पड़े,
.
जिस तरह सहा है हमने तेरी बेरुख़ी को,
यूँ कोई दूसरा सहे तो दिल ‘दहल’ पड़े,
.
ज़रा चुपके से देना मेरे हाथो में हाथ सनम,
कही देख कर उफान पे फ़रिश्ते ना ‘जल’ पड़े”!
उल्फ़त बदल गई, कभी नीयत बदल गई,
खुदगर्ज़ जब हुए, तो फिर सीरत बदल गई,
अपना कसूर दूसरों के सर पर डाल कर,
कुछ लोग सोचते हैं हक़ीक़त बदल गई !!
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो,
हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो!
उन्हें भी जोश-ए-उल्फ़त हो तो लुत्फ़ उट्ठे मोहब्बत का
हमीं दिन-रात अगर तड़पे तो फिर इस में मज़ा क्या है
उन्हें भी जोश-ए-उल्फ़त हो तो लुत्फ़ उट्ठे मोहब्बत का
हमीं दिन-रात अगर तड़पे तो फिर इस में मज़ा क्या है
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया
यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
शकील बदायूंनी
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया।
जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं
ज़हर पीकर दवा से डरते हैं
ज़ाहिदों को किसी का ख़ौफ़ नहीं
सिर्फ़ काली घटा से डरते हैं
दुश्मनों के सितम का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
-शकील बदायूंनी
बेहतर दिनों की आस लगाते हुए 'ऐ दोस्त',
हम बेहतरीन दिन भी गँवाते चले गए!
इश्क़ में वफ़ा की आस लगाए हुए,
ताउम्र हम धोखे पे धोखे खाते चले गए!
आओ आपस में कर लें, तूर कि बिजली तकसीन,
रोशनी तुम में रहे और तड़प हम में रहे!
तूर - आसमान
तकसीन - बाँटना
लहजे मे बदजूबानी,
चेहरे पर नकाब लिए फिरते हैं!
जिनके खुद के बहीखाते बिगड़े हैं,
वो मेरा हिसाब लिए फिरते हैं!
प्यास बुझ जाए तो शबनम खरीद सकता हूं,
ज़ख़्म मिल जाए तो मरहम खरीद सकता हूं।
ये मानता हूं मैं, दौलत नहीं कमा पाया,
मगर तुम्हारा हर एक गम खरीद सकता हूं।
हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए,
ये वो नहीं जो किसी रहगुज़र का हो जाए!
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में,
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए!
हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए,
ये वो नहीं जो किसी रहगुज़र का हो जाए!
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में,
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए!
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है,
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है!
अच्छा-सा कोई मौसम तन्हा-सा कोई आलम,
हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है!
इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ ऐ फ़राज़,
इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं!
ये मुमकिन नहीं की सब लोग ही बदल जाते हैं,
कुछ हालात के सांचों में भी ढल जाते हैं!
मिलना था इत्तिफाक, बिछड़ना नसीब था,
मैं उस से उतना ही दूर हो गया, जितना करीब था!
मैं उस शख्स को देखने को तरसता रहा गया,
जिसने छीनी मेरी मोहब्बत, वो मेरा रकीब था!!
इक ख़्वाब मुजस्सम होने से वीरान हुआ,
इक जुगनू हाथ में आया,तो बेजान हुआ।
इक पेड़ पे आए फल,तो परिंदे लौट आए,
इक शख़्स का बचपन बीता तो अन्जान हुआ।
इक देखने वाला देख चुका जब आँखों में,
फिर दिल में अनदेखे का हर मेहमान हुआ।
इक़ ख़्वाब से जैसे सौ ताबीरें निकली हों,
इक चेहरा कितने चेहरों की पहचान हुआ।
मुजस्सम=साकार
ईज़ाद=खोज
हिजरत=सफ़र
सोग=दु:ख
वो एक सफ़र ईज़ाद का था,या हिजरत थी,
जो रस्ता शहर से निकला,इक मैदान हुआ।
मैं राख़ हुआ तो सोग की कोई बात नहीं,
उस ख़ाक़ पे मेरे वस्ल का दिन आसान हुआ।
वो शख़्स कि मेरे नाम से जिसको नफ़रत थी,
मैं छोड़ आया तो रो-रो कर हलकान हुआ।
जितने अपने थे सब पराए थे,
हम हवा को गले लगाए थे!
एक बंजर ज़मीन के सीने पर,
मैंने कुछ आसमान उगाए थे!
-राहत इंडोरी
मुझको फिर वही सुहाना नजारा मिल गया,
इन आँखों को दीदार तुम्हारा मिल गया,
अब किसी और की तमन्ना क्यूँ मैं करूँ,
जब मुझे तुम्हारी बाहों का सहारा मिल गया।
हो सके तो पहचान लो,
मेरे दर्द का सबब मेरी नजर से!
मैं जुबान से कहुँगा तो,
कुछ लोग रुसवा हो जायेंगे!
दिल आबाद कहाँ रह पाएगा तेरी याद भुला देने से,
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से!
*"इस फ़रेबी दुनिया में"*
*"मुझे दुनियादारी नही आती"*
*"झूठ को सच साबित करने की"*
*"मुझे कलाकारी नही आती"*
*"जिसमें सिर्फ मेरा हित हो"*
*"मुझे वो समझदारी नही आती"*
*"शायद मैं इसीलिए पीछे हूं"*
*"मुझे होशियारी नही आती"*
*"बेशक लोग ना समझे मेरी वफादारी"*
*"मगर 'यारो मुझे गद्दारी नही आती"...*