मिलना था इत्तिफाक, बिछड़ना नसीब था,
मैं उस से उतना ही दूर हो गया, जितना करीब था!
मैं उस शख्स को देखने को तरसता रहा गया,
जिसने छीनी मेरी मोहब्बत, वो मेरा रकीब था!!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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