मगर है खौफ हवाओं के बदल जाने से।
यह भी अच्छा था कि नाराज़गी रही अकसर
वरना तकलीफ़ बहुत होती दूर जाने से।
तेरे अंदर भी अब कहाँ बचा वो अपनापन
मैं भी कतरा रहा हूँ अब क़रीब आने से।
तुमको आग़ाज़-ए- बेरुखी बहुत मुबारक हो
मैं ये अंजाम जानता था इक ज़माने से।
हर एक बात किसी बात से वाबस्ता है
बहूत कुछ याद आ गया तुम्हें भूलाने से।
अब इबादत कहो या तेरी अकीदत हमको
अजी खुदा मिलेगा अब किसी बहाने से।
थमेगी साँस तो कुछ राहतें मिलेंगी
खैर आज़ाद तो होना है क़ैदखाने से।
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