Tuesday, April 28, 2020

ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है

ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
हमें इक दूसरा अच्छा लगा है

समझना है उसे नज़दीक जा कर
जिसे मुझ सा बुरा अच्छा लगा है

ये क्या हर वक़्त जीने की दुआएँ
यहाँ ऐसा भी क्या अच्छा लगा है

सफ़र तो ज़िंदगी भर का है लेकिन
ये वक़्फ़ा सा ज़रा अच्छा लगा है

मिरी नज़रें भी हैं अब आसमाँ पर
कोई महव-ए-दुआ अच्छा लगा है

हुए बरबाद जिस के इश्क़ में हम
वो अब जा कर ज़रा अच्छा लगा है

वो सूरज जो मिरा दुश्मन था दिन भर
मुझे ढलता हुआ अच्छा लगा है

कोई पूछे तो क्या बतलाएँगे हम
कि इस मंज़र में क्या अच्छा लगा है

हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम
हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम
उसे कैसे लगे रोते हुए हम

कोई देखे न देखे सालहा-साल
हिफ़ाज़त से मगर रक्खे हुए हम

न जाने कौन सी दुनिया में गुम हैं
किसी बीमार की सुनते हुए हम

रहे जिस की मसीहाई में अब तक
उसी के चारागर होते हुए हम

गिराँ थी साए की मौजूदगी भी
अब अपने आप से सहमे हुए हम

कहाँ हैं ख़्वाब में देखे जज़ीरे
निकल आए किधर बहते हुए हम

बढ़ीं नज़दीकियाँ इस दर्जा ख़ुद से
कि अब उस का बदल होते हुए हम

रखें क्यूँकर हिसाब एक एक पल का
बला से रोज़ कम होते हुए हम

बहुत हिम्मत का है ये काम 'शारिक़'
कि शरमाते नहीं डरते हुए हम

No comments: