Monday, April 20, 2020

अपने शहर में ऐसे बेगाने हम न थे

अपने शहर में ऐसे बेगाने हम न थे
थे लोग बहुत जाने पहचाने कम न थे

थी रौनकें बाजार में गलियां भरी भरी
आपस में एक दूजे से अनजाने हम न थे

मिलते थे गर्मजोशी से बाहें उछाल कर
अपने भी दोस्तों में दीवाने कम न थे

होती थी चाय घरों में बेबाक गुफ्तगू
हम सबके अपने अपने अफसाने कम न थे

यूँ बोलती सी लगती थी ये ज़िन्दगी कभी
गो पहले भी ये जंगल औ' वीराने कम न थे
छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं वो
छुपने के लिए हालांकि तहखाने कम न थे

इंसानियत के रिश्तों में फिर से दरार है
पहले से ही दुनिया में ये खाने कम न थे 


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