करम भी उसके सह नहीं पाए।
बेशक आंँख से आँसू मेरी,
दरिया बनकर बह नहीं पाए ।।
ऐसे ऊँचे ओहदे का,
मतलब भी क्या रह जाता है।
जब मन की बात कहने वाला,
ढंग की बात कह नहीं पाए ।।
रुके नहीं मनसूबे उनके,
पल पल मुझे मिटाने को ।
माँ की दुआएं बनीं थीं ढाल,
यूँ घर मेरा ढह नहीं पाए ।।
मत पूंँछो तुम मुझसे,
मेरे घर की दीवारों का रंग।
नज़र उठे जो देख सकूँ कुछ,
इतने पल घर रह नहीं पाए ।।
फूलों की खुशबू पर पहरा,
किसका होता है लेकिन ।
उसको तो बस ज़िद है "ज़फ़र",
सब पाएं पर वह नहीं पाए ।।
ऐ चाँद सितारों तुमको भी,
अफसोस है किस बात का ।
वो बुत घर ही तो पा गये,
पर ख़ुदा की तह नहीं पाए ।।
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