बस एक मील का पत्थर था मैं ,
उस ज्ञान के समुन्द्र में ,
डूबकर भी उस ज्ञान,
तक न पहुच पाया था मैं ,
बेहतर से मिलते मिलते ,
बेहतरी की तलाश हुई ,
पहुचा उस किनारे तक ,
जहां न पहुच पाया था कोई ,
किताबो की दुनिया कितनी हसीन हैं ,
फर्श से अर्श तक ले जाती हैं ,
अगर सिद्धत से चाहो किसी मुकाम को ,
सितारे भी खुद की जगह छोड जाते हैं ,
शब्दो को जोड़ कर हर इतिहास लिखा गया ,
जो आज हैं वो कल लिखा गया ,
तुम चाहो बेशक तो इतिहास लिख दोगे ,
अगर शब्द और कलम पकडने की कला सीख लोगे ,
ज्ञान एक समुन्दर हैं ,
और हम सब उसके केवल एक बूंद के पहलू हैं ,
क्यूँ अभिमान करू खुद के आत्म ज्ञान का ,
सीखा हैं मैने भी हर एक शब्द के ज्ञान का ,
यह समझ लिया मैने ,
ये जान लिया मैने ,
उम्र के साथ साथ उस तजुर्बे
को पहचान लिया मैने ,
किताबो से गुजरते गुजरते ,
उस हसीन रास्तो से मिला ,
मान-सम्मान थी किताबो से ,
मेरी खुद की पहचान थी किताबो से ,
किताबो को पढ़ते पढ़ते ,
खुद के ज्ञान को पहचान लोगे ,
जब तर्क और वितर्क करना सीख लोगे ,
तुम उसी दिन खुद को कामयाब पा लोगे ,
हाँ मुझे ईश्क हैं किताबो से.........
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