तुम छिपा लो मुझे ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह
अपनी नज़रों में गुनाहगार न होते, क्योंकर
दिल ही दुश्मन हैं मुख़ालिफ़ के गवाहों की तरह
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तेरी याद के साये हैं पनाहों की तरह
जिनके ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाये, "फ़ाकिर"
वो भी पेश आये हैं इंसाफ़ के शाहों की तरह
-सुदर्शन फ़ाकिर
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